बलराज साहनी के दुखद बंगले की कहानी, जहां से गुजरते हुए उनके बेटे परीक्षत साहनी बंद कर लेते हैं आंखें

 गुजरे ज़माने के दिवंगत और मशहूर अभिनेता बलराज साहनी के अभिनय के लोग कायल थे. अभिनेता का असल नाम युधिष्ठिर साहनी था. वे भीष्म साहनी के बड़े भाई और अभिनेता परीक्षत साहनी के पिता थे. आजादी से पहले बलराज साहनी पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहते थे. परीक्षत साहनी ने अपनी किताब द नॉन-कॉन्फॉर्मिस्ट: मेमोरीज़ ऑफ़ माई फादर में अपने पिता के बारे में कई बातों का जिक्र किया है. परीक्षत ने लिखा- मेरी मां दमयंती साहनी एक अभिनेत्री थीं. 1930 के दशक के अंत में, मां और पिताजी एक शिक्षक के रूप में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में शामिल हो गए. मेरा जन्म वहीं हुआ. इस किताब में परीक्षत ने बताया कि मेरे पिताजी के न जाने कितने ही लोगों ने कहा अब बड़ा घर ले लो. बड़े स्टार हो चुके हो.

बड़ी मुश्किल से वो इस बात के लिए मान गए. जब मैं छुट्टियों में घर आया तो उन्होंने मुझे वो घर दिखाया. मुझे घर पसंद नहीं आया. वो बहुत विशाल था और उसके सामने स्लम एरिया. मैंने कहा इस घर को छोटा बनाइए और इसमें बड़ा सा बगीचा बनाइए. ये घर हमारे माइंड सेट का नहीं है. बलराज साहनी ने कहा अब तो घर बन चुका है बेटा.

परीक्षत साहनी ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब वो रूस में थे तब उन्हें इस घर को लेकर एक सपना आया था. उन्होंने कहा मुझे ऐसा लग गया था कि इस घर में कुछ बड़ी गड़बड़ होने वाली है.

इस सपने के बाद उस घर में एक के बाद एक बुरी घटनाएं घटी. उन्होंने आखिर कबूल किया बेटे तूने सही कहा था कि ये घर हमारे लिए अच्छा नहीं है. इस घर में सब अपने-अपने कमरे में हैं. सब अपने में सिमट गए. इससे अच्छा तो पुराना घर था. कम से कम सब एक दूसरे से टकराते तो थे. वो वहां खुश नहीं थे. इस घर ने पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया.

उस घर की अब बहुत बुरी हालत है. उसे देखकर सब मुझे कोसते हैं. तू बेटा है कुछ कर इस घर के लिए. पर मैं किसी को कैसे बताऊं कि इस घर ने मेरा बहुत कुछ ले लिया है.

लेकिन दुख होता है उसे देखकर. मेरी बहन अकेले रहती है वहां. घर में सफाई नहीं हो पाती. बड़ा घर है. कोई अब उसे देखना नहीं चाहता. मैं जब भी उस रास्ते से गुजरता हूं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं.

परीक्षत साहनी ने कहा कि वो घर हमारे फ़लसफ़ा के मुताबिक नहीं था. उन्हें भी इस बात का अहसास हो गया था कि वो घर सही नहीं है. फिल्म काबुलिवाला से पहले किसी को पता तक नहीं था वो तीन महीने बिना बताए कहां चले गए. बाद में पता चला वो पठानों की बस्ती में उनके साथ रह रहे हैं.

इस तरह के जमीन से जुड़े हुए अभिनेता और इंसान को वो घर बिल्कुल भी नहीं फला.

वामपंथी विचारधारा के होने के कारण उन्हें फिल्म हलचल की शूटिंग के दौरान उन्हें अरेस्ट करके जेल भेज दिया गया.

लेकिन बाद में डायरेक्टर की सरकार से गुहार के बाद उन्हें जेल से शूटिंग करने की इजाजत मिली. वे सुबह जेल से निकलते और शाम काम खत्म करके जेल चले जाते थे.

बलराज साहनी खुद को नास्तिक कहते थे यही नहीं उन्होंने कहा था कि जब मैं मर जाऊं तो तब किसी पंडित तो नहीं बुलाना न ही कोई मंत्र उच्चारण करना.

बलराज साहनी ने कहा था कि मेरी अंतिम यात्रा पर मेरे शरीर पर लाल रंग का झंडा होना चाहिए.


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