‘काका’ ने दिया सलीम जावेद को सबसे बड़ा मौका, मो. रफी के गाने पर खूब रोए दर्शक

 बेजुबान जानवरों को रुपहले परदे पर शानदार तरीके से दिखाने वाली हिंदी फिल्मों में राजेश खन्ना और तनूजा अभिनीत फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ नंबर वन फिल्म है। यह फिल्म जिस दिन बंबई (अब मुंबई) में रिलीज हुई, सिप्पी फिल्म्स ने शम्मी कपूर, हेमा मालिनी और राजेश खन्ना स्टारर अपनी फिल्म ‘अंदाज’ का दो पेज का एक विज्ञापन साप्ताहिक फिल्म पत्रिका स्क्रीन में रिलीज किया, जिसमें ‘अंदाज’ को एक ऐसी कामयाब फिल्म बताया गया था, जिसने रिलीज के पहले हफ्ते में ही दस लाख रुपये का कारोबार कर लिया। 

बेजुबान जानवरों को रुपहले परदे पर शानदार तरीके से दिखाने वाली हिंदी फिल्मों में राजेश खन्ना और तनूजा अभिनीत फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ नंबर वन फिल्म है। यह फिल्म जिस दिन बंबई (अब मुंबई) में रिलीज हुई, सिप्पी फिल्म्स ने शम्मी कपूर, हेमा मालिनी और राजेश खन्ना स्टारर अपनी फिल्म ‘अंदाज’ का दो पेज का एक विज्ञापन साप्ताहिक फिल्म पत्रिका स्क्रीन में रिलीज किया, जिसमें ‘अंदाज’ को एक ऐसी कामयाब फिल्म बताया गया था, जिसने रिलीज के पहले हफ्ते में ही दस लाख रुपये का कारोबार कर लिया। ‘अंदाज’ ने ही आगे चलकर देश के हर फिल्म वितरण क्षेत्र में 50 लाख रुपये कमाने का भी रिकॉर्ड बनाया।

फिल्म ‘अंदाज’ का ये रिकॉर्ड तोड़ा राजेश खन्ना की फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ ने जिसने देश के हर फिल्म वितरण क्षेत्र में एक करोड़ रुपये की कमाई करने वाली पहली फिल्म बनकर ‘ऊपर आका, नीचे काका’ जैसे जुमले को मशहूर कर दिया। राजेश खन्ना को फिल्म जगत में लोग काका कहकर ही बुलाते थे। फिल्म ‘अंदाज’ और फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ ये दोनों फिल्में सलीम-जावेद ने लिखी हैं। और, इस फिल्म में इन दोनों लेखकों की एंट्री की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। जब फिल्म ‘अंदाज’ बन रही थी तो सलीम और जावेद का ज्यादातर वक्त राजेश खन्ना के इर्द गिर्द ही बीतता था। राजेश खन्ना को भी समझ आने लगा था कि ‘अंदाज’ की मेकिंग में इन दोनों ‘नए लड़कों’ की अहमियत कितनी है।

'अंदाज’ के सेट पर इसकी हीरोइन हेमा मालिनी को कभी समझ ही नहीं आया कि ये दोनों नए लड़के हैं कौन और क्यों राजेश खन्ना उनसे इतना बातें करते रहते हैं। राजेश खन्ना को कहानियों की नब्ज उन दिनों समझ आया करती थी और लेखकों को वह बहुत सम्मान भी किया करते थे। फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ लेखन का पूरा क्रेडिट सलीम-जावेद को दिलवाने का वादा राजेश खन्ना ने सलीम खान से पहली मुलाकात में किया था। लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई तो इसके संवाद लेखक के रूप में नाम इंदर राज आनंद का गया। हालांकि, फिल्म सुपरहिट हुई तो चिनप्पा देवर ने राजेश खन्ना के कहने पर मुंबई के ट्रेड अखबारों में एक इश्तहार जरूर दिया कि ये फिल्म सलीम जावेद ने लिखी है।

फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ की शुरुआत उन दिनों हुई जब ‘आराधना’ सुपरहिट हो चुकी थी और चिनप्पा देवर अपनी एक फिल्म की रीमेक हिंदी में बनाने को बेताब थे। चिनप्पा देवर साउथ के सुपरस्टार रहे एम जी रामचंद्रन की फिल्मों के निर्माता थे। एमजीआर तब तक नेता बन चुके थे और उन्हीं दिनों देवर के दिमाग में अपनी ही फिल्म ‘देइवा चेयल’ की रीमेक बनाने का ख्याल आया। फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ में सबसे पहले संजीव कुमार को हीरो बनाने की बात चली थी। संजीव कुमार ने ही चिनप्पा देवर को राजेश खन्ना से मिलने की सलाह दी। ‘आराधना’ की शूटिंग पर जब ये मुलाकात हुई तो राजेश खन्ना को समझ ही नहीं आया कि वह हां करें या न करें।

राजेश खन्ना के दिमाग में तभी एक खुराफाती ख्याल आया। राजेश खन्ना को अभिनेता राजेंद्र कुमार को कार्टर रोड वाला बंगला आशीर्वाद खरीदना था। तो, जितनी रकम राजेंद्र कुमार ने इस बंगले की कीमत के तौर पर राजेश खन्ना से मांगी, राजेश खन्ना ने वही रकम फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ करने के नाम पर चिनप्पा देवर से मांग ली। सैंडो एम एम ए चिनप्पा देवर का जितना बड़ा नाम, उतना ही बड़ा उनका दिल। राजेश खन्ना ने जितनी रकम मांगी, वह सब की सब उन्होंने लाकर राजेश खन्ना के सामने रख दी। राजेश खन्ना ने उसी रकम से ये बंगला आशीर्वाद खरीद लिया।

फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ का नाम चिनप्पा देवर ने ‘प्यार की दुनिया’ रखा था और जिस हाल में वह फिल्म लेकर आए थे, उस हाल में राजेश खन्ना उसे बनाना नहीं चाहते थे। फिल्म की कहानी लेकर वह पहुंच गए सलीम खान के पास और बोले कि इसे कुछ ऐसा कर दीजिए कि इस पर फिल्म बन सके। सलीम खान और जावेद अख्तर ने इसकी पटकथा शानदार तरीके से लिखी। फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई और सलीम-जावेद का नाम हो गया। इस फिल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी एम ए थिरुमुगम को मिली जो चिनप्पा देवर के छोटे भाई थे।

फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ का संगीत सुपरहिट रहा। फिल्म में मोहम्मद रफी का एक ही गाना था और ये गाना किशोर कुमार व लता मंगेशकर के गाए बाकी चारों गानों पर भारी पड़ा। ‘नफरत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में, खुश रहना मेरे यार... ’, ये गाना जिसने भी सुना, तो थिएटर में तो रोया ही, थिएटर के बाहर तक लोग रोते हुए सिनेमाघरों से निकलते हुए देखे जाते थे। यह फिल्म दिल्ली और आसपास के वितरण क्षेत्रों में 1 मई को और मुंबई व अन्य फिल्म वितरण क्षेत्रों में 14 मई, 1971 को रिलीज हुई।

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