आपको पता है लाहौर की 'हीरामंडी' से प्राण का नाता, राम लुभाया की दुकान का पान खाकर खुल गई थी किस्मत

 संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज 'हीरामंडी' रिलीज को तैयार है। इसने एक बार फिर लाहौर की हीरामंडी को प्रकाश में ला दिया है। वह हीरामंडी, जो भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले तवायफों का ठिकाना थी, जहां वे पूरे सम्मान के साथ रहा करतीं। उन दिनों हीरामंडी में घुंघरुओं की आवाज गूंजा करती थी। संगीत, संस्कृति, अदब सबकुछ तवायफों के रहन-सहन में था। यह सीरीज उन्हीं तवायफों के जीवन और उसी हीरामंडी को पर्दे पर दिखाएगी। लेकिन, लाहौर की उसी हीरामंडी से अपने दौर के शानदार एक्टर रहे प्राण की एंट्री भी सिनेमा की दुनिया में हुई और फिल्मी अंदाज में हुई। आइए जानते हैं...

अभिनेता प्राण की फिल्मों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे फोटोग्राफी के पेशे में रमे हुए थे। वे जिस कंपनी में थे, उसी ने लाहौर में एक शाखा खोली, जहां प्राण को भी भेज दिया। बन्नी रूबेन की किताब '...और प्राण' में इसका जिक्र है कि प्राण जब लाहौर पहुंचे थे उन्होंने फोटोग्राफी का काम इतने अच्छे से सीख लिया की न सिर्फ उनकी तनख्वाह बढ़ाई गई, बल्कि उन्हें वहां का इंचार्ज भी बना दिया गया। प्राण उन दिनों तांगा रखा करते थे। मिजाज से शौकीन थे। उनका रहन-सहन भी खर्चीला और रुआब वाला था। वे अक्सर लाहौर की हीरामंडी के राम लुभाया की दुकान पर पान खाने अपने दोस्तों के साथ जाया करते थे।

हीरामंडी की मौज-मस्ती में वहां मिलने वाले विभिन्न किस्म के पान भी शामिल थे। इनकी ख्याति ऐसी थी कि नियमति रूप से उस इलाके में न आने वाले लोग भी पान का लुत्फ उठाने अक्सर जाया करते। अपने दोस्तों के साथ प्राण हीरामंडी में रंगीले राम लुभाया की दुकान पर पहुंचे और पान का ऑर्डर दिया। सभी दोस्तों के लिए अलग-अलग किस्म के पान तैयार हो रहे थे। दोस्तों के बीच हंसी-मजाक जारी था। इस बीच एक शख्स की नजर गोरे-चिट्टे और रौबदार कदकाठी वाले प्राण पर ठहर गई। वे प्राण को एक टक घूरते रहे। प्राण को अटपटा लगा तो उन्होंने नजरअंदाज किया। लेकिन, शख्स का घूरना जारी था। यहीं से प्राण की किस्मत पलटने वाली थी। वह शख्स प्राण के पास आया और पूछा, 'तुम्हारा नाम क्या है?' प्राण उस अधेड़ शख्स के घूरने के अंदाज से कुछ चिढ़े हुए थे और पलट कर कहा, 'आपको इससे क्या करना है?'

शख्स ने प्राण को शालीनता से जवाब देते हुए कहा कि मुझे गलत मत समझिए, मेरा नाम वली मुहम्मद वली है। मैं लेखक हूं। मशहूर फिल्म निर्माता दलसुख एम. पंचोली ने मेरी एक कहानी पर फिल्म बनाई। अब मैं उनके लिए एक और फिल्म लिख रहा हूं। मैंने आपके पान खाने के अंदाज पर गौर किया। उसमें मुझे कुछ-कुछ धमकाने का सा रंग लगा। आपका यह रूप रंग मेरी कहानी के एक किरदार से मेल खाता है। क्या आप फिल्म में अभिनय करेंगे? फिल्म का नाम 'यमला जट' है और यह पंजाबी भाषा की फिल्म है। इतना ही नहीं, मुहम्मद वली ने अगले दिन सवेरे दस बजे पंचोली स्टूडियो आने के लिए भी कह दिया। हैरानी की बात है कि फिल्मों में करियर बनाने के लिए जहां स्टार्स निर्देशकों के चक्कर लगाते हैं। वहीं, प्राण ने हाथ आया ऑफर ठुकरा दिया। उल्टा निर्देशक और राइटर ने उनकी खुशामद की।

बन्नी रूबेन की किताब के मुताबिक प्राण को यकीन नहीं हुआ कि फिल्म का प्रस्ताव वास्तविक है, इसलिए उन्होंने इसे हल्के में ले लिया। एक दिन अचानक वली मुहम्मद से प्राण फिर प्लाजा सिनेमा हॉल में टकरा गए। वहां प्राण को देखते हुए वली मुहम्मद ने नाराजगी जाहिर की। प्राण ने माफी मांगते हुए मुलाकात के लिए जाने का वादा किया। इस बार वली मुहम्मद खुद प्राण को स्टूडियो लेकर गए। पंचोली स्टूडियो पहुंचकर पहले ही स्क्रीन टेस्ट की व्यवस्था थी। फिल्म के निर्देशक मोती बी गिडवानी ने प्राण का मेकअप किया। गिडवानी और पंचोली साब दोनों को प्राण का लुक पसंद आया। इस तरह लाहौर की हीरामंडी के पान की दुकान पर पान खाने के अनोखे अंदाज से प्राण की फिल्मों में एंट्री हुई। पंजाबी फिल्मों से शुरू हुआ प्राण का सफर हिंदी सिनेमा में कहां तक पहुंचा, यह किसी से छिपा नहीं है।

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