बुर्का पहनने के ख‍िलाफ थीं नरगिस, शादी से पहले टॉम बॉय थीं संजय दत्त की मां, दिल्ली में पीछे पड़ गई थी भीड़

 बॉलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस नरगिस का जन्म 1 जून, 1929 को फातिमा राशिद के रूप में हुआ था। उन्होंने 1935 में 'तलाश-ए-हक' में एक बाल कलाकार के रूप में स्क्रीन पर अपनी शुरुआत की। यही वह समय था जब फिल्म के क्रेडिट में उन्हें बेबी नरगिस नाम दिया गया था। तब से उन्हें नरगिस के नाम से जाना जाने लगा। नरगिस का निधन बहुत बुरी परिस्थिति में हुआ था लेकिन युवावस्था में वो एकदम नटखट, चुलबुली और टॉमबॉय थीं। उन्हें बुर्का पहनना बिल्कुल पसंद नहीं था। अपनी भतीजी को वो इसे पहनने के लिए बहुत डांटती थीं। उनकी डेथ एनिवर्सरी पर ऐसी ही कई बातों को हम आज पेश कर रहे हैं।

1940-1960 के बीच, उन्होंने राज कपूर के साथ 'बरसात', 'आवारा' और 'आग' जैसी फिल्मों में सुपरहिट जोड़ी बनाई। वह केवल 28 वर्ष की थीं जब उन्हें 'मदर इंडिया' के लिए अकादमी पुरस्कार नॉमिनेशन मिला था। उन्होंने मदर इंडिया के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता।

हालांकि, इसके तुरंत बाद, नरगिस ने सुनील दत्त से शादी कर ली और एक्टिंग लगभग छोड़ दी। वो केवल कुछ ही फिल्मों में दिखाई दीं। उनके तीन बच्चे- प्रिया, नम्रता और संजय दत्त कथित तौर पर उनके बहुत करीब थे।

नरगिस अपने पति के प्रोडक्शन वेंचर से भी जुड़ी थीं। सुनील दत्त के साथ, नरगिस ने अजंता आर्ट्स कल्चरल ट्रूप बनाया, जिसमें उस समय के कई एक्टर्स और सिंगर्स शामिल थे। नरगिस बहुत सोशल वर्क भी करती थीं। 1970 के दशक की शुरुआत में, वह स्पास्टिक्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की पहली संरक्षक बनीं और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान बनाई।

उन्हें बाद में 1980 में राज्यसभा नामांकन के लिए नामांकित किया गया। 1982 में, नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन की स्थापना की गई थी। उनके सम्मान में नरगिस दत्त पुरस्कार भी दिया जाता है।

नम्रता अपनी मां नरगिस के बारे में बताया था कि वो मौज-मस्ती करने वाली इंसान थीं। रिपोर्ट्स में उनके हवाले से कहा गया है कि, 'वह एक बेहतरीन तैराक थीं। जब वो यंग थीं, तो अपने भाइयों- अनवर और अख्तर हुसैन के साथ क्रिकेट और फुटबॉल खेला करती थीं। वह एक टॉमबॉय थीं। नरगिस अपने आसपास स्टारडम नहीं चाहती थीं।'

नम्रता आगे कहती हैं, वह सड़क पर चाटवाले से पानी पुरी खुशी-खुशी खाती थीं। वह थिएटर में फिल्में देखती थीं। जब उनकी भतीजी बुर्का पहनती थीं, तो वह कहती थीं, 'बुर्के में कौन इतनी मुश्किल सहता है?' उन्हें इसमें घुटन महसूस होती थी।

नरगिस को बाज़ारों में खरीदारी करने में भी कोई परेशानी नहीं थी। लेकिन एक दिन उनके साथ कुछ अजीब हुआ था। नम्रता ने बताया- एक दिन मां, उनकी दोस्त इंद्रा गिडवानी, प्रिया और मेरे साथ दिल्ली के एक मॉल में गए। वहां मां खो गईं। इंद्रा आंटी हर दुकानदार से पूछती रहीं, 'नरगिस को देखा क्या?' जल्द ही यह बात चारों ओर फैल गई और इससे पहले कि हमें पता चलता, एक झुंड मां का पीछा करने लगा।'

जाहिर तौर पर, नरगिस लोगों की पसंदीदा थीं। इस बारे में बात करते हुए नम्रता कहती हैं, 'जब वह मसाज के लिए चटाई पर लेटती थीं तो फोन उनके बगल में रहता था। वो बातें करती रहती थीं। पिताजी कहते थे, 'जब वह बात कर रही हैं तो वह आराम कैसे करेंगी?'

जाहिर तौर पर नरगिस के फोन वाली आदत संजय दत्त में भी आ गई। नम्रता को एक मजेदार घटना याद आती है, जहां उनके निधन के कई साल बाद, सुनील ने एक बार मजाक में कहा था कि अगर उनकी मां के पास मोबाइल होता, तो वह टूट गया होता।



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