महंगी गाड़ियों में घूमने वाला सुपरस्टार, भाई की वजह से हुआ बर्बाद, आई ऐसी तंगी, अर्थी उठाने वाला तक नहीं हुआ नसीब
फिल्म इंडस्ट्री के वो दिग्गज अभिनेता जिन्होंने करियर की शुरुआत में छोटे रोल के जरिए अपनी पहचान बनाई, लेकिन जब इंडस्ट्री में छाए तो ऐसे छाए कि लगातार कई हिट फिल्मों में काम किया. हालांकि उनके पिता नहीं चाहते थे. फिर भी वह एक्टिंग की दुनिया में आए और अपनी अलग पहचान बनाई.
हम यहां जिस एक्टर की बात कर रहे हैं उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल पेशे से वकील थे. वह कभी नहीं चाहते थे कि उनका बेटा एक्टिंग की दुनिया में कदम रखे. लेकिन उनकी किस्मत में तो एक्टर बनना लिखा था और वह बने अपने दौर में उन्होंने सालों तक इंडस्ट्री पर राज किया. लेकिन एक गलती ने उनका बना बनाया करियर तबाब कर दिय. एक झटके में एक्टर का करियर अर्श से फर्श तक पर आ गया.
और नहीं भारत भूषण थे. अपनी पढ़ाई पूरी करते ही वह मुंबई चले आए थे. हालांकि यहां उन्होंने शुरुआत में संघर्ष किया था. लेकिन डायरेक्टर महबूब खान की सिफारिश पर वह डायरेक्टर रामेश्वर शर्मा से मिले जो उस वक्त फिल्म ‘भक्त कबीर’ पर काम कर रहे थे. इसके बाद रामेश्वर ने उन्हें फिल्म में काशी नरेश का रोल भी दिया और 60 रुपए महीना की नौकरी भी दे दी. इसी तरह उनके सिने करियर की शुरुआत हुई थी.
भारत भूषण ने अपने करियर में कई हिट फिल्मों में काम किया. 50-60 के दशक में तो वह स्टारडम के ऐसे दौर में थे जब वह राज कपूर और दिलीप कुमार को भी टक्कर दे रहे थे. एक वक्त के बाद तो वह इंडस्ट्री के बड़े स्टार बन गए थे. अपने करियर में कई यादगार फिल्में देने के बाद उन्होंने अपने करियर में अपने भाई के कहने पर ऐसी गलती की जिसके बाद उनका करियर बर्बाद हो गया था.
अपने करियर के पीक पर भारत ने अपने बड़े भाई रमेश की बात मानकर फिल्में प्रोड्यूसर करने को बड़ा कदम उठाया. अपने दौर में उन्होंने कई फिल्में प्रोड्यूस भी कीं. जिनमें उनकी दो फिल्में बसंत बहार और बरसात की रात सुपरहिट भी हुईं. भारत अब फिल्मी दुनिया में बड़ा नाम बन चुके थे. लेकिन अफसोस कि बाद में उन्होंने जितनी भी फिल्में बनाईं वो सब फ्लॉप होने लगी और उनकी जिंदगी में एक समय ऐसा भी आया जब भारत भूषण कर्ज में डूब गए और पाई-पाई को मोहताज हो गए.
बता दें कि दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के मुताबिक भारत भूषण ने ऐसी तंगी झेली थी कि आखिरी दिनों में बहुत ज्यादा बीमार हो गए थे. लेकिन अफसोस कि न तो कोई इलाज करवाने वाला था और न ही कोई उनकी अर्थी उठाने वाला था.
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