गुलशन ग्रोवर को बचपन से ऐक्टिंग का शौक था इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि पढ़ाई खत्म होने के बाद ऐक्टिंंग को ही अपना करियर बनायेंगे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर और स्टेज शो से की और जब यह एहसास होने लगा अब उन्हें फ़िल्मों के लिये ट्राई करना चाहिए तो वह अपने ख़्वाब पूरे करने के लिए मुंबई के लिये चल पड़े। हालांकि मुंबई में टैलेंट के बावज़ूद भी फौरान काम मिल जाये ऐसी किस्मत हर किसी की नहीं होती। गुलशन बताते हैं कि जब वे ऐक्टिंग के लिए मुंबई आये तब भी उन्हें कई बार भूखा ही सोना पड़ता था। फिर भी बचपन से ही संघर्षों में पले बढ़े गुलशन ने अपना हौसला टूटने नहीं दिया। गुलशन हर दिन यही सोचते कि आज का दिन कहाँ निकालूं, कहाँ जाऊं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और हमेशा हालात से जीतने की कोशिश करते रहे। ख़ैर गुलशन को जब फ़िल्मों में काम नहीं मिला तो मुंबई के मशहूर रोशन तनेजा ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट जा पहुँचे और वहाँ जाकर ऐक्टिंग सीखने और अपने गुज़ारे की बात की। रोशन तनेजा ने उनके कॉन्फिडेंस को देखते ही उन्हें अपना असिस्टेंट बना लिया और कुछ ही दिनों बाद गुलशन ने खुद दूसरो को एक्टिंग की बारीकियां सीखानी शुरू कर दी। गुलशन ग्रोवर जिस वक़्त  वहाँ ऐक्टिंग सीख रहे थे वहाँ अनिल कपूर, संजय दत्त और मजहर खान भी उनके साथ ट्रेनिंग ले रहे थे।


ऐक्टिंग इंस्टीट्यूट में होने से एक फ़ायदा यह हुआ कि गुलशन की मुलाक़ात अक्सर फ़िल्मी हस्तियों से होती रहती थी और ऐसे में गुलशन को भी ऑफर मिलने शुरू हो गये थे। फ़िल्मों में बतौर ऐक्टर गुलशन ग्रोवर ने अपने करियर की शुरुआत साल 1980 में आई हिंदी फिल्म 'हम पांच' से की थी हालांकि गुलशन इस बारे में कहते हैं कि मेरी पहली फिल्म 'हम पांच' नहीं बल्कि 'रॉकी' थी क्योंकि इसकी शूटिंग पहले शुरू हुई थी।  ख़ैर इन फ़िल्मों से गुलशन की पहचान भले ही उतनी न बन सकी लेकिन उन्हें काम मिलने शुरू हो गये।  जल्द ही गुलशन की अवतार और सदमा जैसी फ़िल्में भी आईं, जिनसे गुलशन एक विलेन की तौर पर पूरी तरह अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे।  गुलशन ग्रोवर ने राजेश खन्ना और शबाना आज़मी अभिनीत फ़िल्म अवतार से बतौर विलेन अपनी एक सशक्त पहचान बनायी थी। इस फिल्म से उनके जुड़ने का किस्सा भी बेहद दिलचस्प है। दरअसल उस दौर में गुलशन की हालत अच्छी नहीं थी। कहा जाता है कि एक बार शबाना आज़मी जी के सामने वे अपने जूते इसलिए नहीं उतार रहे थे क्योंकि उनके मोजे फटे हुए थे। हालांकि शबाना गुलशन की प्रतिभा और लगन की कायल पहले से थीं और जानती थीं कि इस ऐक्टर को एक सही मौक़ा मिलने की देरी है बस। शबाना आज़मी ने गुलशन को डायरेक्टर मोहन कुमार से मिलवाया जिन्होंने गुलशन को देखते ही अपनी फिल्म में एक निगेटिव रोल ऑफर कर दिया क्योंकि उन्हें गुलशन उस रोल के लिये एकदम फिट लगे। गुलशन ग्रोवर को इसी रोल के लिये मोहन कुमार ने क्यों चुना इसकी एक बड़ी दिलचस्प वज़ह उन्होंने बतायी। दरअसल वह दिलचस्प वज़ह थी गुलशन की नाक, जिसको देखकर उन्हें ऐसा लगा था कि ऐसी नाक वाले चेहरे पे एक मतलबी और मक्कार बेटे का रोल एकदम फिट आयेगा। बताया जाता है कि उस वक़्त उन्होंने कहा था कि गुलशन की नाक को देखकर ऐसा लगता है कि 'यह आदमी तो 100 रुपये के लिये अपने बाप तक को बेच दे।'


गुलशन ने जब रोशन तनेजा के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया था उन्होंने तभी तय कर किया था कि वो विलेन के किरदार ही निभायेंगे। 80 और 90 के दशक में गुलशन ने एक से बढ़कर एक फ़िल्में कीं और बॉलीवुड के सबसे पसंदीदा विलेन भी बन गये। सुभाष घई की ‘राम-लखन’ में उनका तकिया कलाम ‘बैड मैन’ तो दर्शकों को इतना पसंद आया कि इस फिल्म के बाद उन्हें बैडमैन के नाम से ही पुकारा जाने लगा जो आज तक उनकी एक पहचान बना हुआ है।

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