2000 km, 78 दिन... कहानी पंजाब में आतंकवाद के चरम वाले दौर में सुनील दत्त की महाशांति पदयात्रा की

 दिग्गज अभिनेता और राजनेता सुनील दत्त को भला कौन नहीं जानता। भले ही आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके अभिनय और राजनीतिक पारी के दौरान किए गए कार्यों को भला कौन भूल सकता है। याद करिए 1987 का वो दौर जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था। तब सद्भाव और भाईचारा स्थापित करने के लिए सुनील दत्त ने मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर तक महाशांति पदयात्रा की। करीब 78 दिनों तक चली इस यात्रा के दौरान सुनील दत्त 2000 किलोमीटर पैदल चलकर अमृतसर पहुंचे थे। इस यात्रा के दौरान उन्हें पीलिया हो गया, पैरों में छाले तक पड़ गए। बावजूद इसके सुनील दत्त का मनोबल नहीं टूटा। उनकी 'महाशांति पदयात्रा' में बेटी प्रिया दत्त भी शामिल थीं। इनके अलावा भी सैकड़ों की संख्या में लोग उनके साथ चल रहे थे। इस पदयात्रा के दौरान कहा जाता है कि सुनील दत्त ने 500 से ज्यादा सभाएं की थी।

सुनील दत्त ने 1987 में जब महाशांति पदयात्रा का आगाज किया तो शुरू में ऐसा कहा गया कि इसमें बम्बईया सिनेमा की झलक देखने को मिली। एक्टर ने एक ऐसा मिशन चुना जो किसी फिल्म की कहानी जैसा लग रहा था। इसमें खास बात ये थी कि उनकी बेटी प्रिया पूरा सपोर्ट दे रही थीं। वो भारतीय ध्यज को हाथ में लिए पूरी ताकत से यात्रा का नेतृत्व कर रही थीं। बॉम्बे से आए युवाओं के ग्रुप ने भी खास कार्यक्रमों के जरिए अलग ही माहौल बना दिया। जब तक ये यात्रा पंजाब नहीं पहुंची थी तो अलग नजर आ रही थी। हालांकि, पंजाब में एंट्री के बाद ये यात्रा फिल्मी जैसी नहीं रह गई। इसमें जबरदस्त बदलाव आया। उन दिनों पंजाब के हालात खराब थे और चारों ओर डर का माहौल था। हालांकि, पंजाब में यात्रा के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुई जो दिल को छू लेने वाली थी।

सुनील दत्त ने भी जब यात्रा शुरू की होगी तो शायद ही उन्हें इस बात का अहसास रहा होगा कि पंजाब में लोग उनके साथ जुड़ने की कोशिश करेंगे। हालांकि, पंजाब में उन्हें जोरदार सपोर्ट मिला। उनका स्वागत ऐसे किया गया मानो वे ऐसे 'मसीहा' हैं जिनका इंतजार लोग लंबे समय से कर रहे थे। एक ऐसा 'मसीहा' जो जहां भी जाएं तो शांति लाने में सक्षम हों। पंजाब में यात्रा के दौरान रास्ते में लोगों की भारी भीड़ उनके साथ शामिल थी। उनकी पदयात्रा के दौरान एक्टर पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाईं गईं और माला भी पहनाई गई। इस दौरान 'भारत माता की जय' और 'जो बोले सो निहाल' के नारे भी लगाए गए।

सुनील दत्त की यात्रा में कई बेहद भावुक पल भी आए जब महिलाएं उनके पैरों में आंसू भरकर झुक कर बस यही अपील करतीं कि 'बस हमको शांति चाहिए'। सुनील दत्त पर भी वहां की महिलाओं और आम लोगों की अपील का गहरा असर नजर आया। वो जिस टारगेट के साथ यात्रा के लिए उतरे थे अब उसे पूरा का मानो जूनून सवार हो गया। आखिरकार सुनील दत्त की 78 दिनों की यात्रा भावनात्मक रूप से तब संपन्न हुई जब अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रार्थना की। वहां सिख धर्म गुरु और उग्रवादियों के साथ विचार-विमर्श भी किया।

सुनील दत्त की बेटी प्रिया ने अपने पिता की उस यात्रा से जुड़ी बातों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि उनके पिता सुनील दत्त जब अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे और उन्हें अंदर जाने के लिए पुलिस ने बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने की सलाह दी थी। हालांकि उन्होंने इसे पहनने से इनकार कर दिया। जब वो अंदर गए तो वहां हथियार बंद लोगों ने उन्हें अपने साथ ले लिया। उन सबके हाथ में बंदूकें थीं। प्रिया दत्त ने बताया कि स्वर्ण मंदिर के गेट पर मौजूद लोगों ने सुनील दत्त को पहचान लिया था। उन्होंने सादे ड्रेस में पुलिसकर्मियों को अंदर जाने से रोक दिया था। उस समय उन हथियारबंद लोगों ने कहा था कि सुनील दत्त अब उनकी जिम्मेदारी हैं। वे वही लोग थे जिन्होंने स्वर्ण मंदिर को अपने कब्जे में लिया था। पूजा के बाद सुनील दत्त सकुशल बाहर आ गए। उनकी इस यात्रा ने पंजाब की स्थिति को सुधारने में अहम रोल निभाया था।

सुनील दत्त के राजनीतिक करियर पर नजर डालें तो वो पांच बार सांसद रहे। उन्होंने 1984 में कांग्रेस के टिकट पर अपना पहला लोकसभा चुनाव बॉम्बे नॉर्थ वेस्ट सीट (अब मुंबई) से लड़ा और जीते भी। उन्होंने 1989 और 1991 के चुनावों में इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। फिर 1999, 2000 और 2004 में सुनील दत्त फिर यहां से सांसद चुने गए। 1984 में सिख मतदाताओं ने बॉम्बे नॉर्थ वेस्ट लोकसभा क्षेत्र में दिवंगत अभिनेता-राजनेता सुनील दत्त को सिक्कों से तौला था।


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