सलीम-जावेद की कहानी को नहीं मिल रहे थे खरीददार, वहीदा रहमान ने की सिफारिश, बनीं तो साबित हुई 1978 की तीसरी बड़ी HIT
सलीम-जावेद बॉलीवुड को वो जोड़ी, जिन्होंने 'शोले', 'जंजीर', 'दीवार' और 'मिस्टर इंडिया' जैसी कई शानदार फिल्मों की कहानी लिखकर, सिनेमा के इतिहास को गुलजार किया है. इस लेखक जोड़ी को बॉलीवुड की पहली और आखिरी स्टार जोड़ी कहा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक फिल्म का काहीन इस फिल्म ने लिखी और उसके लिए वह मेकर्स के चक्कर लगाते रहे, लेकिन किसी ने उनकी कहानी को तवज्जो नहीं दी. जिसको कहानी द्खाते वो फिल्म को फ्लॉप कहकर रिजेक्ट कर देता. लेकिन फिर 70-80 के दशक की हसीना वहीदा रहमान ने उनके लिए फरिश्ते का काम किया और उनकी एक सिफारिश पर न सिर्फ फिल्म बनीं, बल्कि फिल्म के गानों के साथ एक-एक डायलॉग लोगों के दिलों पर छा गई.
सलीम-जावेद परेशान थे, क्योंकि कोई खरीददार नहीं मिल रहा था. ये बात वहीदा रहमान के कानों तक पहुंची, तो उन्होंने फिल्म को नरीमन ईरानी तक पहुंचाया. उन्होंने इस कहानी पर फिल्म बनाने का फैसला किया और फिल्म कल्ट क्लासिक साबित हुई.
'डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुकिन है...' इस डायलॉग के बाद तो आप समझ गए होंगे कि हम किस फिल्म की बात कर रहे हैं. ये फिल्म साल 1978 में रिलीज हुई, जो सलीम और जावेद ही नहीं अमिताभ बच्च के करियर की बेस्ट फिल्म साबित हुई. फिल्म को कोई खरीददार क्यों नहीं मिल रहा था. इसके पीछे की कहानी भी बड़ी इंटरेस्टिंग है.
दरअसल, सलीम-जावेद ने फिल्म की कहानी तो लिख ली थी. लेकिन, फिल्म का टाइटल भी डिसाइड नहीं किया था. हालांकि, कहानी पूरी थी और इसे लेकर सलीम-जावेद ने देव आनंद, प्रकाश मेहरा और जीतेंद्र के घरों के खूब चक्कर काटे, लेकिन तीनों ने इस स्क्रिप्ट पर फिल्म बनाने से मना कर दिया.
वहीं, अपनी पहली फिल्म के फ्लॉप होने के बाद 12 लाख के कर्ज में डूबे प्रोड्यूसर नरीमन ईरानी को अमिताभ बच्चन, जीनत अमान और चंद्रा बारोट ने एक और फिल्म बनाने की सलाह दी. इन तीनों से उनकी मुलाकात फिल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' की मेकिंग के दौरान हुई थी. नरीमन उस फिल्म के छायाकार थे और चंद्रा बारोट डायरेक्ट मनोज कुमार के असिस्टेंट डायरेक्टर थे. ये वो दौर था, जब अमिताभ बच्चन फिल्म 'जंजीर' के बाद सुर्खियों में छाए हुए थे. अमिताभ सहित सभी ने उन्हें भरोसा दिया कि वह फिल्म के लिए कोई पैसा नहीं लेंगे. अगर फिल्म हिट हुई तो अपनी फीस लेंगे वरना नहीं लेंगे. अपने दोस्तों की सलाह पर नरीमन फिल्म बनाने के लिए तैयार हुए. फिल्म के डायरेक्शन की जिम्मेदारी चंद्रा बारोट को दिया गया और फिल्म में मुख्य किरदार के लिए अमिताभ बच्चन, जीनत अमान ने हां कर दिया, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल फिल्म की कहानी को लेकर थी.
अमिताभ ने दोस्त नरीमन ईरानी को सलाह दी कि वह फिल्म की कहानी के लिए सलीम-जावेद से मिलें. नरीमन ने सलाह मानीं, लेकिन सलीम-जावेद ने उन्हें इतनी महंगी कहानियां सुनाई. इत्तेफाक से नरीमन ईरानी की पत्नी सलमा ईरानी, वहीदा रहमान की हेयर ड्रेसर थीं. उन्होंने वहीदा रहमान के जरिए सलीम जावेद के पास अपने पति नरीमन ईरानी की सिफारिश भेजी. ऐसे में सलीम-जावेद की जोड़ी ने उनसे कहा कि हमारे पास एक ऐसी कहानी है, जिसे कोई खरीदने को तैयार नहीं है. तुम ये कहानी ले लो अगर फिल्म हिट रही तो पैसे दे देना और फिल्म फ्लॉप हुई तो कोई पैसा नहीं लेंगे. यह कहानी कोई और बल्कि फिल्म 'डॉन' की कहानी थी.
फिल्म की मूल कहानी में नरीमन ईरानी में खुद भी थोड़े बदलाव किए थे. फिल्म की शूटिंग शुरू हुई, लेकिन बदकिस्मती देखिए, जिस प्रोड्यूसर की मदद के लिए ये फिल्म बनाई जा रही थी. वह फिल्म के पूरे होने से पहले ही दुनिया से चल बसे. एक हादसे को दौरान उनकी मौत हो गई. लेकिन तंगी की हालत में भी चंद्रा बारोट ने फिल्म को नहीं रोका और साढ़े तीन साल के बाद फिल्म को पूरा कर बिना प्रचार के रिलीज किया.
'शोले' की तरह फिल्म को रिलीज होने के बाद दर्शकों का प्यार नहीं मिला. पहले हफ्ते फिल्म में फिल्म का रिस्पॉस बिलकुल ठंड़ा रहा, लेकिन दूसरे हफ्ते से इस फिल्म को दर्शक मिलने शुरू हो गए और यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आने लगी. ये उस साल की तीसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म बन गई. सालों पहले इस फिल्म ने 7 करोड़ 20 लाख की कमाई की थी. फिल्म के 5 के 5 गाने सुपरहिट रहे.
इस फिल्म को 3 फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिले थे. किशोर कुमार को बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर, आशा भोंसले को बेस्ट फिमेल प्लेबैक सिंगर और अमिताभ बच्चन को बेस्ट एक्टर का अवार्ड दिया गया था. अमिताभ ने अपना अवार्ड प्रोड्यूसर नरीमन ईरानी की विधवा सलमा को दे दिया था.
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