Shatrughn sinha

  70-80 के दशक में कई सितारे बॉलीवुड में आए। कुछ को आते ही स्टारडम मिल गया, तो कुछ सालों तक मेहनत करते रहे। लेकिन एक स्टार ऐसा भी रहा, जिसको कैरियर की शुरुआत में ही विलेन के क़िरदार मिले। लेक़िन उसने आगे चलकर कुछ सालों में ऐसा क़माल किया कि बड़े बड़े सितारों के स्टारडम हिल गए। इन्होंने 1969 में धर्मेंद्र के साथ विलेन बन के इंट्री ली। और कुछ सालों में ख़ुद भी एक स्टार बन गए। इन्होंने सिर्फ़ एक ही फ़िल्म नहीं बल्कि कई फ़िल्मों में विलेन या सहायक के किरदार निभाए। जैसे - 'प्यार ही प्यार', 'बनफूल', 'रामपुर का लक्ष्मण', 'भाई हो तो ऐसा', 'हीरा और 'ब्लैकमेल' ... और कई फ़िल्मों में छोटे मोटे और सपोर्टिंग रोल किये। जैसे - 'मेरे अपने', 'सबक', 'खिलौना', 'आ गले लग जा', 'झील के उस पार', 'जुआरी', 'रास्ते का पत्थर' और बॉम्बे टू गोवा' इत्यादि ...


लेकिन फिर किस्मत पलटी और 1976 में आई फ़िल्म 'कालीचरण' ... इस फ़िल्म से उन्होंने बता दिया कि वो भी किसी सुपरस्टार से कम नहीं हैं। दरअसल सुभाष घई 'कालीचरण' की कहानी लेकर एन एन सिप्पी के पास गए थे। फ़िल्म के लिए दोनों की पहली पसंद उस समय के कोई बड़े स्टार थे। लेकिन जब किसी से बात नहीं बन पाई, तब सिप्पी ने सुभाष घई से स्क्रिप्ट के साथ आगे बढ़ने और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ 'कालीचरण' का निर्देशन करने के लिए कहा।

फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई और फिर शत्रुघ्न सिन्हा ने पीछे पलटकर नहीं देखा। उसके बाद उन्होंने 'अब क्या होगा', 'खान दोस्त', 'यारों का यार', 'दिल्लगी', 'विश्वनाथ', 'मुकाबला', 'जानी दुश्मन', 'काला पत्थर' जैसी कई फ़िल्में दी। इन फ़िल्मों के बाद वह 80 के दशक की शुरुआत से लेकर 90 के दशक के मध्य तक एक भरोसेमंद एक्शन हीरो बन गए। शत्रुघ्न के हीरो बनने के बाद उस दौर के स्टार्स के बीच उनके स्टारडम को लेकर हलचल जरूर शुरू हो गई थी ...

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