उन्होंने अपने फिल्म करियर में ज्यादातर संजीदगी भरे किरदार अदा किए।

 हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता नजीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को हुआ था। नजीर हुसैन एक बेहतरीन अभिनेता थे। उन्होंने कई फिल्मों में अपने किरदारों से एक अमिट छाप छोड़ी थी, लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि नसीर न सिर्फ एक बेहतरीन कलाकार थे बल्कि एक अच्छे लेखक भी थे। इसके अलावा जो बात उन्हें सबसे खास बनाती है, वह यह कि वह एक सच्चे देशभक्त भी थे। नजीर ने देश की आजादी में भी अहम भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं उन्हें भोजपुरी का पितामह भी कहा जाता है, क्योंकि भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत नजीर हुसैन ने ही की थी। तो चलिए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें।


हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता नजीर हुसैन का जन्म 15 मई 1922 को हुआ था। नजीर हुसैन एक बेहतरीन अभिनेता थे। उन्होंने कई फिल्मों में अपने किरदारों से एक अमिट छाप छोड़ी थी, लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि नसीर न सिर्फ एक बेहतरीन कलाकार थे बल्कि एक अच्छे लेखक भी थे। इसके अलावा जो बात उन्हें सबसे खास बनाती है, वह यह कि वह एक सच्चे देशभक्त भी थे। नजीर ने देश की आजादी में भी अहम भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं उन्हें भोजपुरी का पितामह भी कहा जाता है, क्योंकि भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत नजीर हुसैन ने ही की थी। तो चलिए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें।


50 से लेकर 70 के दशक में नजीर हुसैन ने लगभग 500 फिल्मों में काम किया। उन्होंने अपने फिल्म करियर में ज्यादातर संजीदगी भरे किरदार अदा किए। हिंदी सिनेमा में तो उन्होंने पहचान बनाई ही थी, साथ ही भोजपुरी सिनेमा की शुरूआत का श्रेय खास तौर पर नजीर हुसैन को ही जाता है, क्योंकि भोजपुरी भाषा में पहली फिल्म उनके द्वारा ही बनाई गई थी। भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत नजीर हुसैन द्वारा लिखित और बनाई गई फिल्म 'गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ायबो' से हुई थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने हमार संसार, रुस गइलें सइयां हमार और बलम परदेसिया जैसी फिल्म का निर्देशन और निर्माण किया। इस तरह से अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए वह भोजपुरी सिनेमा के पितामह कहलाए।


नजीर हुसैन के पिता साहबजादा रेलवे में थे, इसलिए उनके नक्शे कदम पर चलते हुए नजीर भी फायर मैन के रूप में रेलवे में नौकरी करने लगे, इसी दौरान दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ गया और वह ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए। इसके बाद साल 1943 में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का निर्माण किया तो नजीर उनकी सेना में एनआईए के रैंकों में शामिल हो गए। युद्ध के बाद जब एनआई के सिपाहियों को गिरफ्तार किया गया तो नजीर भी उनमें शामिल थे, और इस तरह से देश की आजादी में उनकी अहम भूमिका रही।


1947 में जब देश आजाद हुआ तो सभी सैनिकों को जेल से बाहर निकाला गया, लेकिन सेना में नौकरी से वंचित हो जाने के बाद नजीर और उनके साथियों ने कला की ओर रुख किया। सभी ने मिलकर देश भर में नाटकों का मंचन करना शुरू किया। यहीं से उनकी सिनेमा के क्षेत्र की नई पारी की शुरूआत हुई। फिल्म उद्योग में काम करने के लिए नजीर कलकत्ता आए और यहां पर उन्होंने बिमल रॉय के सहायक के रूप में काम किया। 1950 में उन्होंने आजाद हिंद फौज पर आधारित फिल्म 'पहला आदमी' के संवाद लिखे। बिमलरॉय द्वारा निर्देशित इस फिल्म में नजीर ने डॉक्टर का किरदार भी अदा किया और इसी के बाद से कैमरे के सामने उन्होंने भूमिकाएं निभाना शुरू कर दीं। नजीर हुसैन के जीवन को यदि देखा जाए तो वह एक प्रेरणा थे। 3.....….................................................................................. 4....…................................................................................... 5....…................................................................................... 6..….................................................................................... .7.….................................................................................... ............................................................................................


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