रिफ्यूजी कैंप में रहने से लेकर पुलिस के डंडे खाने तक, मनोज कुमार की वो कहानी जो सब नहीं जानते

  भारत कुमार' के नाम से मशहूर एक्टर मनोज कुमार के बारे में अभी बहुत-सी ऐसी बातें और किस्से हैं जो सब लोग नहीं जानते। फिल्मों में आने से पहले मनोज कुमार ने काफी स्ट्रगल किया और खूब दुख झेला। 24 जुलाई को मनोज कुमार का 85वां बर्थडे है।


हिंदी सिनेमा में जिस एक्टर को देशभक्ति की अलख जगाने के लिए जाना जाता है, वह हैं एक्टर मनोज कुमार। मनोज कुमार ने देशभक्ति से भरी इतनी फिल्में कीं, कि उन्हें 'भारत कुमार' के नाम से जाना जाने लगा। मनोज कुमार सिर्फ एक एक्टर ही नहीं, बल्कि डायरेक्टर, एडिटर और लिरिस्ट भी रहे हैं। उन्होंने नेशनल और फिल्मफेयर जैसे अवॉर्ड्स के अलावा पद्म श्री सम्मान भी पाया। 24 जुलाई को मनोज कुमार का 85वां बर्थडे है। इस मौके पर हम आपको उनके स्ट्रगल और देश के बंटवारे के दौरान सहे गए अत्याचार की अनसुनी कहानी बता रहे हैं।

विभाजन के बाद पाकिस्तान से दिल्ली आए, रिफ्यूजी कैंप में रहे

Manoj Kumar का जन्म एबटाबाद में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उस वक्त उनका नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी था। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान मनोज कुमार, परिवार के साथ दिल्ली आए थे। उस समय मनोज कुमार (Happy Birthday Manoj Kumar) की उम्र मात्र 10 साल थी। काफी समय तक मनोज कुमार और उनके परिवार को रिफ्यूजी की तरह रहना पड़ा। इस दौरान मनोज कुमार को वह सब देखना पड़ा, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। नन्ही सी उम्र में ही मनोज कुमार के अंदर इतना गुस्सा भर गया था कि एक दिन उन्होंने हाथ में लाठी उठा ली और डॉक्टरों व नर्सों को पीटना शुरू कर दिया।

अस्पताल में चीखती रही मां, मनोज कुमार ने खो दिया था छोटा भाई

मनोज कुमार ने इसका खुलासा कुछ साल पहले 'राज्यसभा टीवी' को दिए इंटरव्यू में किया था। मनोज कुमार ने उसमें स्ट्रगल के दिन याद करते हुए बताया था कि किस तरह रिफ्यूजी कैंप में रहना पड़ा और कैसे उन्होंने छोटे भाई को खो दिया था। मनोज कुमार ने बताया था, 'मैं सबसे बड़ा बेटा था और मेरी एक छोटी बहन थी ललिता। जब विभाजन हुआ था तो उस समय मां ने छोटे बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम कुकू रखा गया था। वह और मेरी मां बहुत बीमार थीं। उस समय हम लोग रिफ्यूजी कैंप में थे। मां अस्पताल में थी और दंगे हो रहे थे। जैसे ही सायरन बजते तो डॉक्टर और नर्स अंडरग्राउंड हो जाते।'


जब मनोज कुमार ने डॉक्टरों और नर्सों को पीटा

मनोज कुमार ने बताया था कि उस समय उनकी मां और छोटे भाई की तबीयत बहुत ही ज्यादा खराब थी। मां डॉक्टरों को आवाज दे रही थी लेकिन वो सभी अंडरग्राउंड थे। मनोज कुमार ने कहा था, 'मां ने चीख मारी। मेरा भाई कुकू भी चला गया था। मैं बहुत गुस्से में था। मैंने एक लाठी उठाई और मैंने अंडरग्राउंड जाकर कुछ डॉक्टरों और नर्सों को बुरी तरह पीटा। मेरे पापा वहां आए और उन्होंने किसी तरह सिचुएशन संभाली।' इसके बाद मनोज कुमार के पिता ने उन्हें कसम दिलवाई कि वह कभी मारपीट या हिंसा नहीं करेंगे।


पुलिस के खाए डंडे, पिता की कसम ने रोका

मनोज कुमार के मुताबिक, वह बहुत गुस्सैल हो गए थे और बात-बात पर मारपीट करने लगे थे। इस कारण उन्हें एक बार पुलिस के डंडे भी खाने पड़े थे। लेकिन पिता द्वारा कसम दिए जाने के बाद उन्होंने फिर कभी मारपीट नहीं की। हालांकि कई बार ऐसे मौके आए थे जब एक्टर का मन करता था कि खींचकर थप्पड़ मार दें, पर पिता को दी कसम उनका हाथ रोक देती।


मनोज कुमार की फिल्में, जीता नेशनल अवॉर्ड और पद्म श्री सम्मान

मनोज कुमार ने फिल्मों में 1957 में कदम रखे थे। उनकी पहली फिल्म 'फैशन' थी, जिसमें उन्होंने 80 साल के बुजुर्ग का किरदार निभाया था। डेब्यू फिल्म के तीन साल बाद मनोज कुमार को 'कांच की गुड़िया' में लीड रोल मिला था। इसके बाद मनोज कुमार ने कई यादगार फिल्में कीं। इनमें 'पिया मिलन की आस', 'हरियाली और रास्ता', 'शहीद', 'वो कौन थी', 'दो बदन', 'हिमालय की गोद में', 'गुमनाम' और 'सावन की घटा' के अलावा 'पूरब और पश्चिम', 'यादगार', 'मेरा नाम जोकर', 'बलिदान' और 'रोटी कपड़ा और मकान' जैसी ढेरों फिल्में शामिल हैं।

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