उनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था ...हिंदी सिनेमा के इतिहास में जॉनी वॉकर को चुनिंदा हास्य

 सर जो तेरा चकराए

या दिल डूबा जाए

आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराए काहे घबराए

तेल मेरा है मुस्की

गंज रहे ना खुस्की

जिसके सर पर हाथ फिरा दूँ चमके किस्मत उसकी

सुन सुन सुन अरे बेटा सुन

इस चम्पी में बड़े बड़े गुन

लाख दुःखों की एक दवा है

क्यों ना आजमाए

काहे घबराए काहे घबराए

प्यार का होवे झगड़ा

या बिज़नेस का हो रगड़ा

सब लफड़ो का बोझ हटे जब पड़े हाथ एक तगड़ा

सुन सुन सुन अरे बाबू सुन

इस चम्पी में बड़े बड़े गुन

लाख दुःखों की एक दवा है

क्यों ना आजमाए

काहे घबराए काहे घबराए

जॉनी वॉकर



ये गाने शायद ही कोई हो जिनको यादनाहो या वो अपने जीवन मे कम से कम  एक बार गाए ना हो. 


जी है आज बात हो रहि हैं सुनहरे दौर के उस हिंदी सिनेमा कि जिस दौर में एक महान कॉमेडियन एक्टर जिनका नाम जॉनी वॉकर था.  वो एक ऐसे एक्टर थे जो अपने दम पर पूरी फिल्म हिट करवा दे .    



कहा जाता हैं कि रुलाने से कहीं ज्यादा मुश्किल होता है, हंसाना. लेकिन बॉलीवुड के मसखरे जॉनी वॉकर ने अपनी मजाकिया भाव-भंगिमाओं से करोड़ों सिनेप्रेमियों को न केवल गुदगुदाया, बल्कि अपनी 'चम्पी' (गीत) से उनकी सारी थकान भी उतारते रहे.  

आज बात होगी अपने जमाने के मशहूर कलाकार और कॉमेडियन जॉनी वॉकर की... उनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था ...हिंदी सिनेमा के इतिहास में जॉनी वॉकर को चुनिंदा हास्य कलाकारों में याद किया जाता है। उन्होंने बॉलीवुड की कई शानदार फिल्मों में अपनी कॉमेडी से दर्शकों के दिलों को जीता है। एक आईब्रो उठाकर उनकी संवाद अदायगी की कला और मसखरी मुस्कान के साथ तंज उन्हें दूसरों से अलग बनाते थे...उन्होंने करीब 300 फिल्मों में काम किया...तो चलिए शुरू करते हैं उनकी जिंदगी का सफर.... 


जॉनी वॉकर ने अपने चेहरे के हाव-भाव की बदौलत ही 'जाने कहां मेरा जिगर गया जी' (मिस्टर एंड मिसेज 55), 'सिर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए' (प्यासा) और 'ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां' जैसे गानों को सदा के लिए अमर कर दिया. वह अपने मासूम, लेकिन शरारती चेहरे से सबको अपनी ओर खींचने का माद्दा रखते थे.  


1. 


1925 को इंदौर में जन्मे वॉकर का असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी था. फिल्म जगत में आने से पहले वह एक बस कंडक्टर थे.

2 उनके पिता श्रीनगर में एक कपड़ा मिल में मजदूर थे. कपड़ा मिल बंद हुई तो पूरा परिवार मुंबई आ गया. पिता के लिए अपने 15 सदस्यीय परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा था. पिता के कंधों से भार कुछ कम करने के लिए बदरुद्दीन बंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) बसों में एक कंडक्टर की नौकरी करने सहित विभिन्न व्यवसायों में हाथ आजमाने की कोशिश करते रहे.


3. 27 की उम्र में वह दादर बस डिपो में मुख्य रूप से तैनात रहे. बदरुद्दीन बस में यात्रियों का टिकट काटने के अलावा अजीबोगरीब किस्से-कहानियां सुनाकर यात्रियों का मन बहलाते रहते. इसके पीछे उनका मकसद यही थी कि कोई उनकी गुप्त अदाकारी को पहचान ले. उनकी यह इच्छा पूरी भी हुई. गुरुदत्त की फिल्म 'बाजी' के लिए पटकथा लिखने वाले अभिनेता बलराज साहनी की नजर एक बस सफर के दौरान बदरुद्दीन पर पड़ी.





4. साहनी ने बदरुद्दीन को गुरु दत्त के साथ अपनी किस्मत आजमाने का सुझाव दिया. बताया जाता है कि सेट पर दत्त से मिलने पहुंचे बदरुद्दीन से एक शराबी की एक्टिंग करने के लिए कहा गया, जिसे देख गुरुदत्त इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बदरुद्दीन को तुरंत 'बाजी' (1951) में साइन कर लिया.



5. 1951 में बाजी 'फिल्‍म' में काम करने के बाद बदरुद्दीन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. देखते ही देखते जॉनी वॉकर ने भारतीय सिनेमा के सबसे यादगार हास्य कलाकारों की फेहरिस्त में नंबर एक पायदान पर कब्जा कर लिया.


6. कहा जाता है कि उन्हें 'जॉनी वॉकर' नाम देने वाले भी गुरु दत्त ही थे. उन्होंने वॉकर को यह नाम एक लोकप्रिय व्हिस्की ब्रांड के नाम पर दिया था. हालांकि, फिल्मों में अक्सर शराबी की भूमिका में नजर आने वाले वॉकर असल जिंदगी में शराब को कतई हाथ नहीं लगाते थे.


7. वॉकर जहां रोते को हंसाने की क्षमता रखते थे, वहीं अपनी बेहतरीन एक्टिंग से भावुक भी कर देते थे. कुछ ऐसा ही उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'आनंद' में कर दिखाया था.


8. 'बाजी'(1951), 'जाल'(1952), 'आंधियां', 'बाराती'(1954), 'टैक्सी ड्राइवर', 'मिस्टर एंड मिसेज 55' (1955), 'श्रीमती 420' (1956), 'सीआईडी', 'प्यासा'(1957), 'गेटवे ऑफ इण्डिया'(1957), 'मिस्टर एक्स','मधुमती'(1958), 'कागज के फूल'(1959), 'सुहाग सिन्दूर'(1961), 'घर बसा के देखो'(1963), 'मेरे महबूब'(1962) एवं 'चाची 420' (1998) उनकी चर्चित फिल्मों में से हैं. जैसी हिट फिल्‍मों के अलावा जॉनी वॉकर ने 1920 के दशक से सन 2003 के बीच लगभग 300 फिल्मों में एक्टिंग की.


9 वॉकर, बी.आर. चोपड़ा की फिल्म 'नया दौर' (1957), चेतन आनंद की 'टैक्सी ड्राइवर' (1954) और बिमल रॉय की 'मधुमति' (1958) से विशेष रूप से संतुष्ट हुए थे.


10. उनकी आखिरी फिल्म 14 साल के लंबे अंतराल के बाद आई और यह फिल्म थी 'चाची 420' इसमें कमल हासन और तब्बू ने लीड रोल अदा किया था.


11. वॉकर ने फिल्मों में अपनी बेहतरीन अदाकारी का नमूना दिखाने के अलावा कुछ गीत भी गए थे. उन्होंने फिल्म बनाने की भी सोची थी, लेकिन बाद में इस विचार को तिलांजलि दे दी.


12. इसी फिल्‍मी सफर के बीच में वॉकर साहब को नूरजहां से प्‍यार हो गया. वॉकर ने परिवार की इच्छा के विरुद्ध नूरजहां से शादी की. दोनों की मुलाकात 1955 में फिल्म 'आरपार' के सेट पर हुई थी, जिसका एक गीत नूर और वॉकर पर फिल्माया जाना था. इस गीत के बोल थे 'अरे ना ना ना ना तौबा तौबा.'


13. वॉकर को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड कॉमेडी के लिए नहीं बल्कि सहायक अभिनेता के रोल के लिए मिला. 1959 में 'मधुमती' के लिए फिल्मफेयर के बेस्‍ट सपोर्टिंग एक्‍टर के अवॉर्ड से नवाजा गया था.


14 इसके बाद फिल्म 'शिकार' के लिए उन्‍हें बेस्‍ट कॉमिक एक्‍टर के फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

15. ताउम्र दर्शकों को हंसाने वाले वॉकर का 29 जुलाई, 2003 को देहान्‍त हो गया. उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शोक जताते हुए कहा था, 'जॉनी वॉकर की त्रुटिहीन शैली ने भारतीय सिनेमा में हास्य शैली को एक नया अर्थ दिया है.'


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