अमर प्रेम (1972):–1.किशोर कुमार को हमेशा इस बात पर नाज रहा कि उनके गाए गानों को परदे पर जितना बेहतरीन लिप सिंक राजेश खन्ना करते हैं, उतना दूसरा कोई नहीं कर सकता। 2.राजेश खन्ना को भी ये एहसास हुआ कि उन्होंने शायद जरूरत से ज्यादा फिल्में हाथ में ले ली हैं और शायद इसी के चलते उन्हें शक्ति सामंत की ये फिल्म उन्हें न मिल पाए जिन्होंने उन्हें सुपरस्टार बनाया। लेकिन, उस्ताद आखिर उस्ताद ऐसे ही नहीं होता। वह शागिर्द की मनोदशा तुरंत भांप लेता है। शक्ति सामंत ने कहा, ‘काका तुम लगातार शूटिंग कर रहे हो मुझे पता है। लेकिन मुझे ये भी पता है कि तुम शाम 6.30 बजे के बाद शूटिंग नहीं करते। तो मैं तुम्हारे

    हिंदी सिनेमा में राजेश खन्ना एक करिश्मे का नाम है। फिल्म ‘बंधन’ से शुरू करके फिल्म ‘मर्यादा’ तक 17 लगातार हिट और इनमें से 15 फिल्में सोलो हिट। ये करिश्मा इसके पहले न कभी हुआ और शायद ही कभी अब आगे होगा। सोचें तो ये करिश्मा हुए भी 50 साल से ऊपर का वक्त गुजर चुका है। लेकिन, हिंदी सिनेमा का शौकीन शायद ही कोई ऐसा बच्चा, बूढ़ा और जवान होगा जिसे राजेश खन्ना का नाम न पता हो। सुपरस्टार बनने की वह एक किताब हैं। उनका हर सबक कमाल है। कहानी सुन ली और अच्छी लगी तो फिर फिल्म करनी ही है चाहे फिर शूटिंग दिन रात ही क्यों न करनी पड़े। गाने बन रहे हैं तो गीतकार से लेकर संगीतकार और गायक तक के साथ लगातार बैठकी और रिकॉर्डिंग तो कभी मिस ही नहीं करना। वह इसलिए कि किशोर कुमार की गाना गाते समय की हर हरकत राजेश खन्ना अपनी अदाकारी में जो ले आते थे। फिल्म अच्छी बन रही है, इसका भरोसा दिलाने की बारी आए तो निर्माता से पैसे न लेकर फिल्म के वितरण अधिकार ले लेने का सिलसिला भी राजेश खन्ना ने ही शुरू किया। और, निर्देशक से मन लग गया तो फिर तो कहना ही क्या? राजेश खन्ना दरअसल स्टार राजेश खन्ना बने फिल्म ‘आराधना’ से और उन्हें सुपरस्टार का तमगा दिलाया फिल्म ‘कटी पतंग’ ने और एक कमाल अभिनेता वह साबित हुए फिल्म ‘अमर प्रेम’ में। और, तीनों फिल्मों के निर्देशक हैं शक्ति सामंत। शक्ति सामंत निर्देशित फिल्म ‘अमर प्रेम’ को रिलीज हुए 50 साल पूरे हो रहे हैं और इसी फिल्म पर हम करेंगे बात  




बांग्ला कहानी पर बनी फिल्म ‘अमर प्रेम’

शक्ति सामंत को कहीं से बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय की एक कहानी पढ़ने को मिल गई, ‘हिंगेर कचौरी’ यानी हींग की कचौड़ी। उन्हें ये कहानी बहुत पसंद आई। फिर उन्हें पता चला कि इस कहानी पर तो बांग्ला में एक फिल्म भी बन चुकी है। उन्होंने फिल्म देखी और इसकी चर्चा शर्मिला टैगोर से की। शर्मिला उस दिन शक्ति सामंत से मिलने उनके दफ्तर पहुंची हुई थीं। कहानी सुनने के बाद शर्मिला ने कहा कि ये फिल्म तो अब मैं ही करूंगी। वह वहां से हिली भी नहीं जब तक कि शक्ति सामंत ने उनका नाम ओके नहीं कर दिया। अगली चुनौती थी फिल्म के हीरो की। फिल्मों की जानकारी वाली वेबसाइट्स पर तमाम जगह ये लिखा मिलता है कि इस फिल्म के लिए पहले शक्ति सामंत ने राजकुमार से बात की थी। लेकिन, ये सही नहीं है। शक्ति सामंत ने इस बारे में खुद एक बार बताया, ‘मैंने काका (राजेश खन्ना) को जब फिल्म की कहानी फोन पर सुनाई तो वह छूटते ही बोले कि ये फिल्म मैं करूंगा। आपको कितनी डेट्स चाहिए। मैंने कहा कि काका तुम तो लगातार बिजी हो शूटिंग में तुम्हारे पास डेट्स कैसे होंगी। मुझे तो हर उस दिन तुम्हारी जरूरत पड़ेगी जिस दिन शर्मिला की शूटिंग होगी।’ राजेश खन्ना चुप। शक्ति सामंत हैलो हैलो बोलते रहे, दूसरी तरफ से कोई जवाब ही नहीं आया।





रात की शूटिंग में सनी फिल्म ‘अमर प्रेम’

राजेश खन्ना को भी ये एहसास हुआ कि उन्होंने शायद जरूरत से ज्यादा फिल्में हाथ में ले ली है और शायद इसी के चलते उन शक्ति सामंत की ये फिल्म उन्हें न मिल पाए जिन्होंने उन्हें सुपरस्टार बनाया। लेकिन, उस्ताद आखिर उस्ताद ऐसे ही नहीं होता। वह शागिर्द की मनोदशा तुरंत भांप लेता है। शक्ति सामंत ने कहा, ‘काका तुम लगातार शूटिंग कर रहे हो मुझे पता है। लेकिन मुझे ये भी पता है कि तुम शाम 6.30 बजे के बाद शूटिंग नहीं करते। तो मैं तुम्हारे साथ शाम 6.30 बजे के बाद शूटिंग करूंगा।’ बात बन गई। राजेश खन्ना ने पहली बार अपने करियर में देर रात तक लगातार छह महीने बस इसी एक फिल्म की शूटिंग की है। शक्ति सामंत ने अपनी शूटिंग की पूरी योजना कुछ इस तरह बनाई कि दोपहर दो बजे की शिफ्ट में शर्मिला टैगोर आतीं, अपने हिस्से की शूटिंग करतीं और फिर शाम 6.30 बजे के बाद राजेश खन्ना आते तो दोनों के साथ वाले दृश्यों की शूटिंग होती। फिल्म ‘अमर प्रेम’ की पूरी शूटिंग स्टूडियो के अंदर हुई है। सिर्फ दो दिन के लिए फिल्म की यूनिट आउटडोर गई। एक तो फिल्म के पहले दृश्य के लिए जिसमें शर्मिला टैगोर पर एसडी बर्मन का गाया गाना फिल्माया गया है, ‘डोली में बिठाई के कहार..’। ये शूटिंग मुंबई के करीब नालासोपारा नामक जगह पर हुई। और, दूसरे दिन फिल्म की यूनिट तब बाहर गई, जब फिल्म का आखिरी दृश्य फिल्माया गया कोलकाता में, जहां शर्मिला टैगोर औऱ विनोद मेहरा के रिक्शे वाले सीन शूट किए गए।





प्रेमी, प्रेमिका और पूत में पली फिल्म ‘अमर प्रेम

देखा जाए तो फिल्म ‘अमर प्रेम’ (Amar Prem) की पूरी कहानी का मर्म यही है कि जिन्हें हम सबसे ज्यादा चाहते हैं, उनसे कोई रिश्ता हो ये जरूरी नहीं है। हर रिश्ते का नाम नहीं होता। यहां पति से दुत्कारी गई पत्नी को शांति पड़ोसी के बेटे में मिली। फिल्म ये भी बताती है कि पत्नी की बेरुखी का शिकार हुआ पति कहीं न कहीं अपने मन की बातें कहने का आसरा तलाश ही लेता है। फिल्म ‘अमर प्रेम’ देखा जाए तो पूरा जीवन दर्शन ही है। इस फिल्म में नायक और नायिका के साथ एक बच्चा भी है। तीनों अपनों के तानों से दुखी हैं। और, तीनों आपस में प्रेम की एक ऐसी डोरी में बंधे नजर आते हैं जिसका बस एहसास ही आंखों में पानी ला देता है। फिल्म का नायक आनंद अपनी पत्नी के पार्टियों में मशगूल रहने के चलते एक शाम यूं ही नशे में कोलकाता घूमने निकलता है तो तांगावाला उसे पहुंचा देता एक कोठे के सामने। कोठे में हालात की मारी पुष्पा को गांव का ही एक धूर्त शख्स बेच गया है। मां की दुत्कारी गई बेटी को लगता है यही उसका अब जीवन है। लेकिन, उसके स्वरों को अब भी श्याम की तलाश है और पुष्पा का श्याम आता है आनंद बनकर। वह पूछता भी है, ‘तुम्हारा नाम पुष्पा है? मीरा होना चाहिए।’



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संवादों की चाशनी में पगी फिल्म ‘अमर प्रेम’

फिल्म ‘अमर प्रेम’  जिस बांग्ला कहानी पर बनी, इसी कहानी पर बनी थी बांग्ला फिल्म ‘निशि पद्मा’, फिल्म निर्देशक सौमिक सेन बताते हैं, ‘ये बांग्ला की बहुत मशहूर फ़िल्म है और इसका उच्चारण बांग्ला के मुताबिक ‘निशि पद्दो’ है।’  शक्ति सामंत ने इस कहानी पर हिंदी में फिल्म बनाने का फैसला तो ये कहानी पढ़ने के बाद ही ले लिया था लेकिन हिंदी में फिल्म बनाने से पहले उन्होंने जब ‘निशि पद्मा’ देखी तो उसके पटकथा लेखक अरबिंद मुखर्जी को ही उन्होंने इसे हिंदी में अनूदित करने की जिम्मेदारी सौंप दी। अरबिंद ने पूरी पटकथा अंग्रेजी में लिखी और रमेश पंत ने इसमें राजेश खन्ना के डॉयलॉग, ‘मैंने तुमसे कितनी बार कहा पुष्पा मुझसे ये आंसू नहीं देखे जाते, आई हेट टीयर्स!’ को लिखते समय आखिरी के तीन शब्द वैसे के वैसे ही रहने दिए, जैसे अरबिंद मुखर्जी ने अंग्रेजी में लिखे थे। बाद में राजेश खन्ना के प्रशंसकों ने ये संवाद ‘पुष्पा! आई हेट टीयर्स’ बनाकर प्रचलित कर दिया और अब भी इसे खूब दोहराया जाता है। पूरी फिल्म में राजेश खन्ना का किरदार आनंद अपनी प्रेमिका पुष्पा की आंखों में आंसू न आने देने की कोशिश में लगा रहता है। एक दृश्य में पुष्पा को पता चलता है कि उसकी मां तो कब की चल बसी और उसके खर्च के नाम पर उससे खामखां ही पैसे लिए जाते रहे तो वह टूट जाती है। तब आनंद उसे लेकर हावड़ा ब्रिज के पास जाता है और उसका दिल बहलाता है। पश्चिम बंगाल सरकार से हावड़ा ब्रिज के पास शूटिंग की अनुमति न मिलने पर शक्ति सामंत ने ये गाना भी मुंबई के स्टूडियो में ही शूट किया।




प्रेम की परिभाषा से सजी फिल्म ‘अमर प्रेम’

प्रेम का मूल मंत्र है, तत् सुखे सुखे त्वम्। यानी जिससे आप प्रेम करते हैं, उसके सुख में ही आपका सुख है। यहां आनंद तो प्रेम करता है पुष्पा से, लेकिन पुष्पा नंदू से प्रेम करती है। पुष्पा की खुशी के लिए ही आनंद उसके यहां न आने की बात मान लेता है। लेकिन, वह अपने रिश्ते को जग जाहिर करने दिन के उजाले में फिर वहां आता है। नंदू अपनी सौतेली मां से परेशान है और पुष्पा की गोद में संतोष पाता है। दोनों के बीच प्रेम का जो रिश्ता है उसे आर डी बर्मन के संगीतबद्ध किए गाने ‘बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया, का करे यशोदा मैया’ के जरिये निर्देशक ने बहुत ही शानदार तरीके से निखारा है। इस गाने के लिए ही आर डी बर्मन को अपने पिता एस डी बर्मन की डांट भी पड़ी थी क्योंकि इसकी पहले जो धुन बनी थी, वह एस डी बर्मन को जमी नहीं। फिल्म में नंदू बने बाल कलाकार का नाम फिल्म के पोस्टर पर बेबी लिखा मिलता है, हालांकि फिल्म की ओपनिंग क्रेडिट्स में ये नाम बॉबी है। इसी बाल कलाकार ने फिल्म ‘एक फूल दो माली’ में भी काम किया।



शर्मिला के अभिनय से तनी 

आर डी बर्मन, आनंद बक्षी और किशोर कुमार की तिकड़ी के बनाए गीतों की भी फिल्म ‘अमर प्रेम’  एक मिसाल मानी जाती है। किशोर कुमार को हमेशा इस बात पर नाज रहा कि उनके गाए गानों को परदे पर जितना बेहतरीन लिप सिंक राजेश खन्ना करते हैं, उतना दूसरा कोई नहीं कर सकता। शर्मिला टैगोर की ये दूसरी फिल्म रही शक्ति सामंत के साथ जिसमें उन्हें एक उम्रदराज महिला का किरदार करना पड़ा। इससे पहले वह फिल्म ‘आराधना’ में भी राजेश खन्ना की मां का किरदार कर चुकी हैं। तब अपने बाल सफेद किए जाने पर उनकी फिल्म के निर्देशक शक्ति सामंत से थोड़ी खटपट भी हुई। शर्मिला टैगोर का कहना था कि उनकी मां के तो बाल बिल्कुल सफेद नहीं हुए हैं फिर वह फिल्म में उनके बाल सफेद क्यों कर रहे हैं। मामला इसलिए भी संवेदनशील हो गया क्योंकि शक्ति सामंत ने तब फिल्म के पहले दिन ही इस सीन की शूटिंग शुरू कर दी थी।



चलते चलते..

फिल्म ‘अमर प्रेम’ में शर्मिला टैगोर का उम्र के चौथपन का ये रूप क्लाइमेक्स के आखिरी दृश्यों की जान है। जिस धर्मशाला में पुष्पा बर्तन धोती है, उसी में उसका वह पति भी आखिरी सांसें गिनता मिलता है जिसने कभी पुष्पा को बांझ बताकर घर से निकाल दिया था। वह मरता है तो पुष्पा को अपना वह बेटा मिलता है जिसे उसने जन्म ही नहीं दिया। बेटा अपनी मां को लेकर घर के लिए कोलकाता की सड़कों पर निकलता है तो मां दुर्गा भी घरों को आते दिखती हैं। दो अलग अलग दिशाओं में जा रही दुर्गा मां और पुष्पा मां का यह दृश्य इतना अधिक मार्मिक है कि फिल्म देखते वक्त आंखें भर ही आती हैं। और, इसी दृश्य से ठीक पहले पूरी फिल्म ‘आई हेट टीयर्स’ कहता रहा आनंद भी अपने आंसू रोक नहीं पाता है। यही ‘अमर प्रेम’ है और यही इस फिल्म का कामयाबी का रहस्य भी। फिल्म ‘अमर प्रेम’ ओटीटी इरॉस नाउ या यूट्यूब के अल्ट्रा मूवी पार्लर चैनल पर देखी जा सकती है। बाइस्कोप में आज इतना ही, जल्द ही फिर मिलेंगे किसी और सुपरहिट फिल्म के किस्सों के साथ..!


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