बाइस्कोप: 12 फ्लॉप के बाद अमिताभ ने कुर्सी को मारी लात और हिन्दी सिनेमा की हुई सदी के महानायक से मुलाकात
चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा, ये गाना तो आपने जरूर सुना होगा। ये गाना है 11 मई 1979 को रिलीज हुई धर्मेंद्र और रेखा स्टारर फिल्म कर्तव्य का। और, इसी दिन यानी 11 मई को ही साल 1973 में रिलीज हुई अमिताभ बच्चन की एक ऐसी फिल्म, जिसकी कामयाबी को लेकर वह खुद मुतमईन नहीं थे। वह यहां तक कह चुके थे कि अगर ये फिल्म भी फ्लॉप हुई तो वह वापस इलाहाबाद चले जाएंगे। लोग उन्हें फ्लॉप हीरो को तमगा दे चुके थे और इस फिल्म के चलने, न चलने पर ही उनके करियर का कांटा टिका था। उनकी तब तक 12 फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं और इन फिल्मों ने बॉम्बे टू गोवा और आनंद जैसी फिल्मों की शोहरत पर पानी फेर दिया था। जब उस जमाने की तमाम हीरोइनों ने अमिताभ बच्चन के साथ काम करने से इंकार कर दिया तो उनके साथ आई थीं उनकी खास सखी जया भादुड़ी, जिन्होंने इसके बाद जीवन भर अपने इस रीयल लाइफ हीरो का साथ नहीं छोड़ा। आज के बाइस्कोप में बात इसी फिल्म की। नाम, जंजीर।
आप कहेंगे कि जब आज के बाइस्कोप में किस्से जंजीर के ही सुनाने थे तो कर्तव्य तक जाने की क्या जरूरत। तो धर्मेंद्र का जिक्र यहां इसलिए क्योंकि ये कहानी सबसे पहले इसके लेखकों सलीम-जावेद से धर्मेंद्र ने ही खरीदी थी। धर्मेंद्र ये फिल्म मुमताज के साथ करने की बात निर्देशक प्रकाश मेहरा से तय कर चुके थे। धर्मेंद्र और प्रकाश मेहरा की दोस्ती हुई फिल्म समाधि से। फिल्म सुपरहिट रही। इसके पहले का रिकॉर्ड भी प्रकाश मेहरा का दमदार रहा। शशि कपूर के साथ वह 1969 में ही हिट फिल्म हसीना मान जाएगी बना चुके थे और संजय खान व फिरोज खान को लेकर 1971 में उन्होंने बनाई सुपरहिट फिल्म मेला। समाधि में प्रकाश मेहरा ने धर्मेंद्र के साथ आशा पारेख और जया भादुड़ी को लिया था। धर्मेंद्र उन दिनों तीन तीन शिफ्ट में फिल्में कर रहे थे और जंजीर की शूटिंग थोड़ा रुककर शुरू करना चाहते थे। प्रकाश मेहरा के सामने समस्या ये थी कि सुनील दत्त और राखी वाली उनकी पिछली फिल्म आन बान ज्यादा चली नहीं थी और उन्हें जंजीर छह महीने के भीतर शूट करके किसी तरह रिलीज कर देनी थी ताकि उनका करियर धीमा न पड़े। पर धर्मेंद्र इसके लिए तैयार नहीं हुए। दरअसल धर्मेंद्र और प्रकाश मेहरा के बीच फिल्म जंजीर को लेकर बात समाधि के समय से ही चल रही थी। पं. मुखराम शर्मा की लिखी समाधि की कहानी धर्मेंद्र को इतनी पसंद आई थी कि वह यह फिल्म करने के बदले जंजीर में पैसा लगाने को भी तैयार हो गए थे।
जंजीर लंबे समय तक अटकी रही तो उत्तर प्रदेश में जिला बिजनौर के प्रकाश मेहरा एक दिन पूरे ताव में धर्मेंद्र के घर जा पहुंचे और आर पार की बातें करने लगे। धर्मेंद्र ने देखा कि कहीं फिल्म के चक्कर में दोस्ती न हाथ से निकल जाए तो उन्होंने अपने पैसे से खरीदी फिल्म जंजीर की स्क्रिप्ट प्रकाश मेहरा को दे दी और ये भी छूट दे दी कि वह चाहें तो किसी दूसरे अभिनेता के साथ ये फिल्म बना सकते हैं। इसके बाद के कुछ किस्से आपको पता होंगे, कुछ नहीं। आपको पता होगा कि ये फिल्म देव आनंद से लेकर राजकुमार और दिलीप कुमार तक का चक्कर लगाकर अमिताभ बच्चन की झोली में गिरी। देव आनंद को फिल्म में अपने ऊपर चार पांच गाने चाहिए थे, प्रकाश मेहरा इसके लिए तैयार नहीं हुए। राजकुमार चाहते थे फिल्म मद्रास में शूट हो। प्रकाश मेहरा ने अपनी कहानी का शहर बदलने से इंकार कर दिया। दिलीप कुमार को तो फिल्म के हीरो का किरदार ही नहीं जमा। अमिताभ बच्चन की एक फिल्म उन्हीं दिनों रिलीज हुई थी बॉम्बे टू गोवा। फिल्म जंजीर में धर्मेंद्र, मुमताज के अलावा जो तीसरे कलाकार साइन हुए थे, वह थे प्राण। प्राण ने ही प्रकाश मेहरा को फिल्म का वो फाइटिंग सीन देखने की सलाह दी, जिसमें अमिताभ चुइंगम चबाते हुए शत्रुघ्न सिन्हा की पिटाई करते हैं। प्रकाश मेहरा ने फिल्म देखी। अमिताभ बच्चन उन्हें जंच गए। इधर वह अमिताभ बच्चन को साइन करके आए, उधर मुमताज ने ये फिल्म ये कहते हुए छोड़ दी कि वह शादी करने की योजना बना रही हैं और शूटिंग के लिए तारीखें नहीं दे सकतीं। हालांकि उन्होंने फिल्म छोड़ी थी अमिताभ बच्चन के साथ अपनी एक और फिल्म बंधे हाथ का हश्र देखकर। तब फिल्म में जया भादुड़ी की एंट्री हुई।
वैसे तो फिल्म जंजीर से ही अमिताभ का नाम अखबारों में एंग्री यंग मैन पड़ा लेकिन जावेद अख्तर का मानना रहा है कि इस नाम का असली ठप्पा अमिताभ बच्चन पर फिल्म दीवार से लगा। उसके पहले लोग मदर इंडिया में सुनील दत्त और गंगा जमना में दिलीप कुमार को भी सिस्टम से नाराज एंग्री यंग मैन के रूप में देख चुके थे, लिहाजा फिल्म जंजीर में सलीम खान ने विजय खन्ना का किरदार ऐसा गढ़ा, गुस्सा जिसके पूरे जिस्म में सुलग रहा था। वह न किसी से बोलता था। न मुस्कुराता था और न ही ज्यादा किसी से मिलता जुलता था। दीवाली की रात एक हाथ में घोड़े वाला ब्रेसलेट पहने एक अपराधी के हाथों अपने माता-पिता खो चुका विजय मनोवैज्ञानिक रूप से बचपन से ही भीतर भीतर घुटता रहता है। बड़ा होकर जब वह पुलिस की नौकरी करता है तो भी ज्यादा तीन पांच नहीं सुनता। जुए के अड्डे चलाने वाले शेर खान से उसका पंगा होता है तो वह वर्दी वाला ताना मार देता है। फिर विजय सादी वर्दी में शेर खान के इलाके में आता है और ये लड़ाई फिर दोस्ती में बदल जाती है। शेर खान गैरकानूनी काम छोड़ गैराज का काम करने लगता है और कहानी में ट्विस्ट आता है अमिताभ बच्चन के रिश्वतखोरी के आरोप में निलंबित होने से। इस संकट के समय माला उसकी मदद करती है। शेर खान भी साथ आता है। और, तेजा का खात्मा होता है।
इस फिल्म में मशहूर अभिनेता अजीत ने तेजा का किरदार किया। हामिद अली खान के नाम से बचपन गुजारने वाले अजीत की परवरिश नवाबी अंदाज में हुई क्योंकि वालिद उनके हैदराबाद के निजाम के यहां काम करते थे। इस फिल्म के लिए जब अजीत विलेन बने तो उन्होंने प्रकाश मेहरा से पूछा कि क्या कभी उन्होंने असल जिंदगी के माफिया डॉन से मुलाकात की है। उन्होंने बताया कि असल जिंदगी के ये बड़े बड़े डॉन कभी चीखते चिल्लाते नहीं हैं। उनका सर्द लहजा ही काम कर जाता है। और, ऐसे ही इंदौर के एक डॉन का पता सलीम खान को भी मालूम था। सलीम और अजीत दोनों मिले। फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले अजीत ने लंबा वक्त इस शख्स के साथ गुजारा और उसके तौर तरीके सीखे। फिल्म में शेर खान का किरदार करने वाले प्राण ने भी इस फिल्म के लिए काफी कुछ तैयारियां कीं। फिल्म में उनका जो गेटअप है, वह उनका खुद का तैयार किया हुआ है। प्राण ने अपनी एक फिल्म का गेटअप कभी किसी दूसरी फिल्म में रिपीट नहीं किया। अगर लुक एक जैसा हुआ तो वह बोली बदल लेते थे। फिल्म जंजीर को बनाने में भी प्राण का ही सबसे बड़ा योगदान रहा। धर्मेंद्र और मुमताज के फिल्म छोड़ देने के बाद भी प्राण ने प्रकाश मेहरा का साथ नहीं छोड़ा। ये इसके बावजूद कि इस फिल्म को छोड़ने पर मनोज कुमार ने उन्हें दो फिल्में देने का लालच भी दिया था। प्राण जुबान के पक्के इंसान आखिर तक रहे। लेकिन, इस फिल्म में जो एक गाना है, यारी है ईमान मेरा, यार मेरा जिंदगी...उसकी शूटिंग के वक्त वह इतना गुस्सा हुए कि शूटिंग बीच में छोड़ घर चले गए। बाद में बड़ी मुश्किल से वह ये गाना करने को राजी हुए, पूरी फिल्म में इसी गाने के दौरान अमिताभ बच्चन थोड़ी देर के लिए पर्दे पर मुस्कुराते हैं।
फिल्म में मन्ना डे का गाया ये गाना और लता मंगेशकर व मोहम्मद रफी का गाया गाना, दीवाने हैं दीवानों का न घर चाहिए, सुपरहिट गाने रहे अपने समय के। इस दो गाने में तो गाने के गीतकार गुलशन बावरा खुद नाच रहे हैं हारमोनियम बजाते हुए। फिल्म जंजीर में कुल पांच गाने हैं। इनमें से तीन गाने तो सुपर डुपर हिट रहे। चौथा गाना ‘दिलजलों का दिल जला के’ भी खूब बजा जिसे लिखा था फिल्म के निर्देशक प्रकाश मेहरा ने। फिल्म जंजीर में संगीत दिया था कल्याण जी आनंद जी ने। फिल्म के गाने रेडियो पर तो खूब बज रहे थे लेकिन इनके रिकॉर्ड्स ढूंढ़ने में लोगों को खूब परेशानी हुई। गानों के कैसेट्स बनने भी तब बस शुरू ही हुए थे भारत में और कहते हैं कि उसी साल रिलीज हुई एक और सुपरहिट फिल्म के संगीतकारों ने बाजार से फिल्म जंजीर के सारे रिकॉर्ड्स और कैसेट्स उठवा लिए थे। फिल्म जंजीर के लिए अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार नामांकन भी मिला लेकिन ये अवॉर्ड उस साल गया ऋषि कपूर की झोली में फिल्म बॉबी के लिए। कैसे उनको ये पुरस्कार मिला था, इसका खुलासा वह खुद अपनी आत्मकथा में कर चुके हैं। अमिताभ बच्चन को इस साल फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का पुरस्कार मिला था फिल्म नमक हराम के लिए। अमिताभ बच्चन तब से लेकर अब तक तमाम फिल्मफेयर अवॉर्ड जीत चुके हैं बेस्ट एक्टर के। बॉबी के लिए जहां ऋषि कपूर सबसे कम उम्र के फिल्मफेयर पुरस्कार विजेता बने, वहीं अमिताभ बच्चन सबसे ज्यादा उम्र में फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड बना चुके हैं।
फिल्म जंजीर को हिंदी सिनेमा की ट्रेंड सेटर फिल्म माना जाता है। ये फिल्म उस दौर में बनी जब हीरो पर्दे पर सिर्फ इश्क करता दिखाई देता। अपने आसपास समाज में हो रहे भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और अराजकता से वह लड़ता भी था तो बीच बीच में लौटकर अपनी माशूका के पास जरूर आ जाता था। यहां उसे बाकी दुनिया से कुछ लेना देना ही नहीं है। अपना घर तोड़ने की हद तक जाकर विजय खन्ना जमाने से भिड़ जाता है। एक बुजुर्ग के हाथ की खाली बोतलhu और उसके तीन बेटों की जहरीली शराब से मौत उसे चैन से जीने नहीं देती। फिल्म को समाज की सच्चाई से जोड़ने की ये कोशिश ही फिल्म जंजीर की कामयाबी का असली राज है। कुछ राज फिल्म के ऐसे भी हैं जो अमिताभ बच्चन को भी बहुत बाद में पता चले। फिल्म का कलकत्ता में प्रीमियर हुआ तो वहां इकट्ठा हुजूम प्राण की जय जयकार कर रहा था। फिल्म के वितरकों ने इसका प्रचार ही प्राण की फिल्म के तौर पर कर रखा था। इसे देख अमिताभ की आंखें नम हो आईं। प्रकाश मेहरा ने तब अमिताभ का कंधा दबाया और कहा, पिच्चर खत्म होने दो यही लोग थोड़ी देर में तुम्हारी जय जयकार करते दिखेंगे। हुआ भी यही। फिल्म कलकत्ता में तो चल निकली थी लेकिन फिल्म के कलाकार जब बंबई लौटे तो यहां मामला शांत था। बंबई में फिल्म ने रफ्तार पकड़नी शुरू की रविवार से। प्रकाश मेहरा उस दिन बांद्रा पश्चिम स्थित थिएटर गेटी गैलेक्सी के सामने से गुजरे तो वहां उन्हें हाउसफुल का बोर्ड लगा दिखा और टिकटें ब्लैक में बिकती दिखीं। सोमवार से फिल्म ने रफ्तार पकड़ी और ऐसी पकड़ी की आज तक हिंदी सिनेमा की कल्ट फिल्म मानी जाती है।
11 मई 1973 को फिल्म रिलीज हुई। इसकी कामयाबी मनाने अमिताभ और जया विदेश जाना चाहते थे। दोनों को घरवालों की इसके लिए मंजूरी भी मिल गई लेकिन तीन जून 1973 को शादी करने के बाद। 47 साल बाद इस फिल्म के कलाकारों में सिर्फ अमिताभ बच्चन ही अब तक सिनेमा में नियमित काम कर रहे हैं। टीवी पर आने वाले विज्ञापनों में उनकी संख्या आज भी देश में किसी भी दूसरे कलाकार या ब्रांड अंबेडसर से ज्यादा है। बिल्कुल ठीक गिनती अगर आप पूछ रहे हैं तो बता देते हैं कि इस समय अमिताभ बच्चन के 20 अलग-अलग उत्पादों के विज्ञापन टीवी पर आते हैं। उनकी अगली फिल्म झुंड के जल्द ही प्राइम वीडियो पर रिलीज होने के संकेत मिल रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म एबी आणि सीडी को भी लोग प्राइम वीडियो पर ही खूब देख रहे हैं। चलते-चलते एक खास बात और। अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर के तमिल रीमेक में एम जी रामचंद्रन और तेलुगू रीमेक में एन टी रामाराव लीड रोल कर चुके हैं। फिल्म के मलयालम रीमेक के हीरो थे जयन। राम चरण तेजा ने साल 2013 में इस फिल्म का हिंदी और तेलुगू में मॉडर्न वर्जन प्रियंका चोपड़ा के साथ बनाने की कोशिश की और ये दोनों फिल्में राम गोपाल वर्मा की शोले की तरह फ्लॉप रहीं।
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